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papita ki Kheti

पपीते की खेती कर किसान हो रहे हैं मालामाल, आगे चलकर और भी मुनाफा मिलने की है उम्मीद

पपीते की खेती कर किसान हो रहे हैं मालामाल, आगे चलकर और भी मुनाफा मिलने की है उम्मीद

आजकल समय बदल रहा है और किसान भी अपनी फसलों और खेतीबाड़ी को लेकर पहले से ज्यादा जागरूक हो गए हैं। अब वह जमाना नहीं रहा है जब किसान एक ही तरह की फसलों को पारंपरिक तरीके से खेत में लगाते रहते थे और आगे चलकर यह उम्मीद करते थे कि सभी तरह की परिस्थितियां सही रहें और उन्हें अच्छा उत्पादन मिल सके। 

आजकल किसान एक्सपर्ट आदि की सलाह लेकर ना सिर्फ अपनी कृषि की तकनीकों को बदल रहे हैं, बल्कि पारंपरिक तरीके की फसलों से भी हटकर कुछ खेती कर रहे हैं। 

महाराष्ट्र में ज्यादातर किसान आजकल बागवानी फसलों की तरफ रुख कर रहे हैं, क्योंकि इन फसलों में नुकसान होने की संभावना भी कम रहती है। साथ ही कम मेहनत करते हुए आपको ज्यादा मुनाफा मिलने की संभावना रहती है। एक पल जो किसानों में बेहद लोकप्रिय हो रहा है, वह है पपीता। 

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि महाराष्ट्र के सांगली में एक किसान ने 1 एकड़ जमीन में पपीते की खेती की जिससे उसे सालाना 23 लाख रुपए की कमाई हुई है। इस किसान ने एक अलग तरह के पपीते की खेती की है, जिसकी मांग बाजार में बहुत ज्यादा है।

कौन सी किस्म का है ये पपीता

प्रतीक पुजारी नाम के एक किसान ने अपने खेत में लगभग एक हजार पपीते के पेड़ लगाए थे। जो पिछले 2 साल से लगे हुए हैं और उन पर अभी फल लगने शुरू हुए हैं। 

अभी तक लगभग 210 टन पपीते का उत्पादन हो चुका है और इसे बेचकर प्रतीक पुजारी ने 23 लाख रुपए का मुनाफा कमा लिया है। उनके द्वारा लगाई गई पपीते की किस्म 15 नंबर पपीता है।

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क्यों है ये पपीता इतना डिमांड में

पपीते की 15 नंबर किस्म की बाजार में बहुत ज्यादा डिमांड है। इसके उत्पादन में बहुत ज्यादा मेहनत या फिर संसाधन लगाने की जरूरत नहीं पड़ती है और साथ ही यह बहुत तरह की बीमारियों में इलाज के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।

इसलिए बाजार में इसकी मांग समय के साथ बढ़ती ही जा रही है। इसके अलावा प्रतीक पुजारी बताते हैं, कि उन्होंने इसके उत्पादन में ज्यादा से ज्यादा जैविक खाद का इस्तेमाल किया है। ताकि वह इसे ऑर्गेनिक तौर पर बाजार में ला सके और अपना मुनाफा कमा सकें। 

पपीते की इस किस्म को अपने खेत में लगाकर आप 1 से 2 साल के अंदर इसका उत्पादन शुरू कर सकते हैं और इसे बाजार में लाकर अच्छा-खासा मुनाफा कमा सकते हैं।

75% सब्सिडी लेकर उगाएं ताइवान पपीता और हो जाएं मालामाल

75% सब्सिडी लेकर उगाएं ताइवान पपीता और हो जाएं मालामाल

आजकल वह समय नहीं रहा जब किसान एक ही तरह की फसलों को पारंपरिक तरीके से उगाकर इस बात का इंतजार करते थे, कि सभी तरह की परिस्थितियां फसलों के अनुकूल रहें और उन्हें कुछ ना कुछ पैसा मिल सके। आजकल खेती के क्षेत्र में भी माहौल काफी बदल गया है। बड़े-बड़े किसान आजकल एक्सपर्ट लोगों की सलाह लेकर नई नई तकनीक और अलग-अलग तरह के संकर बीज आदि इस्तेमाल करते हुए फसलों का उत्पादन कर रहे हैं। जिससे उन्हें लाखों और करोड़ों का फायदा मिल रहा है। बागवानी की फसलें जैसे फल-फूल आदि की खेती में ऐसे ही मुनाफा अच्छा रहता है। लेकिन हाल ही में बिहार के भागलपुर में एक किसान गुंजेश गुंजन ने अपने पारंपरिक तरह से की गई खेती को एक तरफ करते हुए खेती की एक नई तकनीक अपनाकर ताइवान पपीता अपने खेत में लगाया। नई तकनीक से की गई इस खेती से गुंजेश को लाखों का मुनाफा हो रहा है।

किस तरह से किया पपीते की खेती में बदलाव

गुंजेश से हुई बातचीत से पता चलता है, कि उनके पिताजी और उससे पहले उनके दादाजी भी पपीते की खेती करते थे। पपीते की खेती उनका पुश्तैनी व्यापार माना गया है, लेकिन गुंजेश ने इसमें हल्का सा बदलाव कर कुछ नया करने का सोचा। उन्होंने ताइवान से पपीते के बीज मंगवाए जो पुणे में डिलीवर किए गए. बाद में उन बीजों को उगाते समय कुछ किस्म का बदलाव करते हुए गुंजेश ने ताइवान पपीता की खेती शुरू की।


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उद्यान विभाग ने भी की मदद

बिहार में पहले से ही बागवानी फसलों के लिए सब्सिडी की सुविधा दी जाती है। गुंजेश को भी अपने पपीते की खेती के लिए उद्यान विभाग की तरफ से 75% की सब्सिडी दी गई जिसका इस्तेमाल वह बाहर से बीज मंगवाने के लिए कर सकता है। इसके अलावा यहां पर उद्यान विभाग ने अलग-अलग तरह की कंपनियों के साथ भी टाईअप करके रखा है। ताकि वह समय-समय पर किसानों को अच्छी तकनीक का इस्तेमाल करते हुए खेती करने की सलाह देती रहे।

ताइवान पपीता क्यों है खास

सिंदूरी लाल रंग का यह पपीता गाइनोडेइशियस पद्धति द्वारा उगाया जाता है और यह बहुत ज्यादा मीठा होता है। इसकी ऊपरी परत आम पपीते के मुकाबले थोड़ी साफ होती है, जिसके कारण यह बहुत लंबे समय तक चल सकता है। बाकी पपीतों की तरह है यह भी गुच्छे में लगता है।


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गुंजेश से हुई बातचीत में पता चला कि शुरू में उन्हें भी इसकी फसल उगाने और उसके बाद बाजार में इसे बेचने के लिए काफी पापड़ बेलने पड़े थे। शुरू शुरू में व्यापारियों के पास उसे खुद जाना पड़ता था, लेकिन अब यह आलम है, कि व्यापारी फसल तैयार होने से पहले ही उसके पास आकर फसल का दाम निर्धारित कर लेते हैं और पहले ही उसकी सारी फसल भी बुक हो जाती है। गुंजेश की तरह ही बाकी किसान भी उसकी ही फसल पद्धति को अपनाकर 4 लाख से ₹5 लाख का मुनाफा कमा रहे हैं।